काश, सरकार  समय से जाग गयी होती. तो  दिल्ली पुलिस बदनाम ना होती,-बबिता शुक्ला
काश, सरकार  समय से जाग गयी होती. तो  दिल्ली पुलिस बदनाम ना होती,-बबिता शुक्ला

 


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48 घंटे बाद सरकार को अहसास होता है कि इलाके में और फोर्स भेजनी चाहिए.


उत्तर पूर्वी ज़िले के महज़ 3 हज़ार पुलिसवाले 12 इलाकों को संभाल रहे थे.


3 हज़ार जवानों के सहारे दिल्ली को छोड़ दिया गया. नतीजा लाशों की बढ़ती गिनती और शोलों में तब्दील घरौंदों की इन तस्वीरों की शक्ल में सामने आई


48 घंटे तक सरकार और पुलिस ने हालात क्यों बिगड़ने दिए? दिल्ली हाईकोर्ट ने  कहा कि पुलिस को नौकरशाहों के बजाए आम लोगों की मदद करनी चाहिए. शायद हाईकोर्ट का इशारा दिल्ली में ट्रंप के दौरे की तरफ था. ट्रंप सोमवार शाम को दिल्ली पहुंचे थे. लेकिन उनकी सुरक्षा के लिए दिल्ली पुलिस के 10 हज़ार से ज़्यादा जवानों की ड्यूटी रविवार को ही असाइन कर दी गई थी


नयी दिल्ली । समाज सेवी बबिता शुक्ल ने देश में हो रहे पुलिस कर्मियों के शोषण पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा उत्तर पूर्वी दिल्ली के करीब करीब 12 पुलिस थाने से लगते इलाकों में रविवार से ही तनाव था. हर एक को पता था कि हालात खराब हो रहे हैं. सड़कों का मंज़र चीख चीख कर कह रहा था कि कुछ करो, वरना देर हो जाएगी. लेकिन सबकुछ जानने समझने के बावजूद उत्तर पूर्वी ज़िले के महज़ 3 हज़ार पुलिसवाले 12 इलाकों को संभाल रहे थे. संभालना भी क्या एक तरह से तमाशबीन बने हुए थे. गलती इन 3 हज़ार पुलिसवालों की भी नहीं थी. ये तादाद में कम थे और सामने दंगाई इनसे कहीं कहीं ज़्यादा. मगर इसके बावजूद पूरे रविवार और फिर पूरा सोमवार. इन्हीं 3 हज़ार जवानों के सहारे इलाके को छोड़ दिया गया. नतीजा लाशों की बढ़ती गिनती और शोलों में तब्दील घरौंदों की इन तस्वीरों की शक्ल में सामने आई. अब सवाल ये है कि आखिर रविवार और सोमवार यानी पूरे 48 घंटे तक सरकार  ने हालात क्यों बिगड़ने दिए? दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि पुलिस को नौकरशाहों के बजाए आम लोगों की मदद करनी चाहिए. शायद हाईकोर्ट का इशारा दिल्ली में ट्रंप के दौरे की तरफ था. ट्रंप सोमवार शाम को दिल्ली पहुंचे थे. लेकिन उनकी सुरक्षा के लिए दिल्ली पुलिस के 10 हज़ार से ज़्यादा जवानों की ड्यूटी रविवार को ही असाइन कर दी गई थी. दिल्ली पुलिस के हज़ारों जवानों के अलावा ट्रैफिक पुलिस, स्वॉट कमांडोज, स्नाइपर्स, बॉम्ब स्क्वायड, ड्रोन और तमाम आला अफसरों समेत दिल्ली के कोतवाल यानी पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक ट्रंप की ड्यूटी बजाने में ही मशगूल थे.सोमवार को एक तरफ उत्तर पूर्वी दिल्ली सुलगनी शुरु हो चुकी थी तो वहीं दूसरी तरफ दिल्ली के तमाम आला पुलिस अफसर ट्रंप की सुरक्षा में बिज़ी रहे. सोमवार रात यूं ही गुज़र गई. दिल्ली पुलिस के कोतवाल या उनके सीनियर साथी कोई भी मौके पर नहीं पहुंचा. मंगलवार पूरे दिन ट्रंप दिल्ली में थे. दिल्ली पुलिस के कोतवाल और उनके साथी पूरे दिन फिर ट्रंप में बिज़ी रहे. उधर, तब तक उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगाईयों का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा था. रात करीब 11 बजे ट्रंप दिल्ली से रवाना हो जाते हैं. उनके जाने के बाद तब सरकार और पुलिस को याद आता है कि दिल्ली का एक इलाका जल रहा है. फिर क्या था, मंगलवार को अचानक मीटिंग का दौर शुरु हो जाता है. गृहमंत्री, मुख्यमंत्री, उप राज्यपाल, पुलिस कमिश्नर सभी अब अचानक एक्टिव नज़र आने लगते हैं. 48 घंटे बाद उन्हें अहसास होता है कि इलाके में और फोर्स भेजनी चाहिए. आनन-फानन बाकी ज़िलों की पुलिस, रैपिड एक्शन फोर्स, अर्ध सैनिक बल और यहां तक की बीएसएफ को भी मैदान में उतार दिया जाता है. दंगे से सबसे ज़्यादा प्रभावित चार इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया जाता है. दंगाईयों को देखते ही गोली मारने का हुक्म दिया जाता है.


खुद एनएसए अजीत डोभाल मंगलवार रात दंगा ग्रस्त इलाके का दौरा करने निकल पड़ते हैं. और तब पहली बार दिल्ली के पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक भी इस इलाके में आते हैं डोभाल के साथ. सरकार और पुलिस के देर से ही जागने. पर जागने का असर अब दिखने लगता है. मंगलवार रात से छिटपुट घटनाओं को छोड़कर हालात काबू में नज़र आने लगते हैं. हालांकि तनाव अब भी बराबर बना हुआ है. काश, सरकार  यही काम रविवार को ही कर लेती. तो और दिल्ली पुलिस बदनाम ना होती,


 पुलिस कर्मियों की समस्याओं को सरकार को समझना चाहिए और उनकी समस्याओं का निस्तारण होना चाहिए उन्होने कहा पुलिस कर्मियों की सुरक्षा मुख्य मुद्दा है इसके साथ कोई समझौता नहीं हो सकता है। इसके अलावा वर्दी भत्ता व राशन मनी में बढ़ोत्तरी हर जिला के पुलिस लाईन में पारिवारिक आवास, महिला पुलिस कर्मियों के लिए अलग बैरक व शौचालय तथा पुलिस कर्मियों के बच्चों के लिए विशेष विद्यालय की मांग वर्षों से लंबित पड़ी है। लेकिन सरकार इन पर ध्यान नही दे रही है ।


उन्होने कहा हरदोई:में संदिग्ध परिस्थितियों में महिला आरक्षी सिद्धार्थी ने लगाई फांसी मौत, अपने कमरे के अंदर फांसी लगाकर कर ली आत्महत्या, महिला आरक्षी की मौत से हड़कंप, सूचना पर सीओ पहुंचे मौके पर कोतवाली बेनीगंज का मामला। पुलिस अधिकारियों के शोषण का शिकार थी महिला आरक्षी। कई बार पुलिस कार्यालय में लगा चुकी थी फरियाद। पुलिस अफसरों की संवेदनहीनता के चलते कर ली खुदकुशी।" alt="" aria-hidden="true" />


उन्होने कहा हम समाजसेवा के माध्यम से पुलिस कर्मियों के सहयोग के लिए सदैव अग्रणी रहेगे और उनकी समस्याओं की को  सरकार से लेकर समाज तक में उठानें का प्रयास करेगें और उनके सुख दुख में सहभागी बनेगें ।